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Аудио книги на хинди: Рассказ "Изгнание", автор Премчанд
मुंशी प्रेमचंद (१८८०-१९३६) автор - известный индийский писатель - Мунши Премчанд (1880 – 1936) हिन्दी उर्दू साहित्य के शीर्षतम कथाकार की कहानियाँ - рассказы лучших представителей литературы на хинди и урду
Рассказ कहानी "निर्वासन" - Nirvasan - Изгнание (июнь 1924)
परशुराम –वहीं—वहीं दालान में ठहरो! Парашурам*: Остановитесь там в коридоре! मर्यादा—क्यों, क्या मुझमें कुछ छूत लग गई! Марьяда**: Почему? Разве я заразная?! परशुराम—पहले यह बताओं तुम इतने दिनों से कहां रहीं, किसके साथ रहीं, किस तरह रहीं और फिर यहां किसके साथ आयीं? तब, तब विचार...देखी जाएगी। मर्यादा—क्या इन बातों को पूछने का यही वक्त है; फिर अवसर न मिलेगा? परशुराम—हां, यही बात है। तुम स्नान करके नदी से तो मेरे साथ ही निकली थीं। मेरे पीछे-पीछे कुछ देर तक आयीं भी; मै पीछे फिर-फिर कर तुम्हें देखता जाता था,फिर एकाएक तुम कहां गायब हो गयीं? मर्यादा – तुमने देखा नहीं, नागा साधुओं का एक दल सामने से आ गया। सब आदमी इधर-उधर दौड़ने लगे। मै भी धक्के में पड़कर जाने किधर चली गई। जरा भीड़ कम हुई तो तुम्हें ढूंढ़ने लगी। बासू का नाम ले-ले कर पुकारने लगी, पर तुम न दिखाई दिये। परशुराम – अच्छा तब? मर्यादा—तब मै एक किनारे बैठकर रोने लगी, कुछ सूझ ही न पड़ता कि कहां जाऊं, किससे कहूं, आदमियों से डर लगता था। संध्या तक वहीं बैठी रोती रही।ै परशुराम—इतना तूल क्यों देती हो? वहां से फिर कहां गयीं? मर्यादा—संध्या को एक युवक ने आ कर मुझसे पूछा, तुम्हारेक घर के लोग कहीं खो तो नहीं गए है? मैने कहा—हां। तब उसने तुम्हारा नाम, पता, ठिकाना पूछा। उसने सब एक किताब पर लिख लिया और मुझसे बोला—मेरे साथ आओ, मै तुम्हें तुम्हारे घर भेज दूंगा। परशुराम—वह आदमी कौन था? मर्यादा—वहां की सेवा-समिति का स्वयंसेवक था। परशुराम –तो तुम उसके साथ हो लीं? मर्यादा—और क्या करती? वह मुझे समिति के कार्यलय में ले गया। वहां एक शामियाने में एक लम्बी दाढ़ीवाला मनुष्य बैठा हुआ कुछ लिख रहा था। वही उन सेवकों का अध्यक्ष था। और भी कितने ही सेवक वहां खड़े थे। उसने मेरा पता-ठिकाना रजिस्टर में लिखकर मुझे एक अलग शामियाने में भेज दिया, जहां और भी कितनी खोयी हुई स्त्रियों बैठी हुई थीं। परशुराम—तुमने उसी वक्त अध्यक्ष से क्यों न कहा कि मुझे पहुंचा दीजिए? पर्यादा—मैने एक बार नहीं सैकड़ो बार कहा; लेकिन वह यह कहते रहे, जब तक मेला न खत्म हो जाए और सब खोयी हुई स्त्रियां एकत्र न हो जाएं, मैं भेजने का प्रबन्ध नहीं कर सकता। मेरे पास न इतने आदमी हैं, न इतना धन? परशुराम—धन की तुम्हे क्या कमी थी, कोई एक सोने की चीज बेच देती तो काफी रूपए मिल जाते। मर्यादा—आदमी तो नहीं थे। परशुराम—तुमने यह कहा था कि खर्च की कुछ चिन्ता न कीजिए, मैं अपने गहने बेचकर अदा कर दूंगी? मर्यादा—सब स्त्रियां कहने लगीं, घबरायी क्यों जाती हो? यहां किस बात का डर है। हम सभी जल्द अपने घर पहुंचना चाहती है; मगर क्या करें? तब मैं भी चुप हो रही। परशुराम – और सब स्त्रियां कुएं में गिर पड़ती तो तुम भी गिर पड़ती? मर्यादा—जानती तो थी कि यह लोग धर्म के नाते मेरी रक्षा कर रहे हैं, कुछ मेरे नौकरी या मजूर नहीं हैं, फिर आग्रह किस मुंह से करती? यह बात भी है कि बहुत-सी स्त्रियों को वहां देखकर मुझे कुछ तसल्ली हो गईग् परशुराम—हां, इससे बढ़कर तस्कीन की और क्या बात हो सकती थी? अच्छा, वहां के दिन तस्कीन का आनन्द उठाती रही? मेला तो दूसरे ही दिन उठ गया होगा? मर्यादा—रात- भर मैं स्त्रियों के साथ उसी शामियाने में रही। परशुराम—अच्छा, तुमने मुझे तार क्यों न दिलवा दिया? मर्यादा—मैंने समझा, जब यह लोग पहुंचाने की कहते ही हैं तो तार क्यों दूं? परशुराम—खैर, रात को तुम वहीं रही। युवक बार-बार भीतर आते रहे होंगे? मर्यादा—केवल एक बार एक सेवक भोजन के लिए पूछने आयास था, जब हम सबों ने खाने से इन्कार कर दिया तो वह चला गया और फिर कोई न आया। मैं रात-भर जगती रही। परशुराम—यह मैं कभी न मानूंगा कि इतने युवक वहां थे और कोई अन्दर न गया होगा। समिति के युवक आकाश के देवता नहीं होत। खैर, वह दाढ़ी वाला अध्यक्ष तो जरूर ही देखभाल करने गया होगा? मर्यादा—हां, वह आते थे। पर द्वार पर से पूछ-पूछ कर लौट जाते थे। हां, जब एक महिला के पेट में दर्द होने लगा था तो दो-तीन बार दवाएं पिलाने आए थे। परशुराम—निकली न वही बात!मै इन धूर्तों की नस-नस पहचानता हूं। विशेषकर तिलक-मालाधारी दढ़ियलों को मैं गुरू घंटाल ही समझता हूं। तो वे महाशय कई बार दवाई देने गये? क्यों तुम्हारे पेट में तो दर्द नहीं होने लगा था.? मर्यादा—तुम एक साधु पुरूष पर आक्षेप कर रहे हो। वह बेचारे एक तो मेरे बाप के बराबर थे, दूसरे आंखे नीची किए रहने के सिवाय कभी किसी पर सीधी निगाह नहीं करते थे। परशुराम—हां, वहां सब देवता ही देवता जमा थे। खैर, तुम रात-भर वहां रहीं। दूसरे दिन क्या हुआ? मर्यादा—दूसरे दिन भी वहीं रही। एक स्वयंसेवक हम सब स्त्रियों को साथ में लेकर मुख्य-मुख्य पवित्र स्थानो का दर्शन कराने गया। दो पहर को लौट कर सबों ने भोजन किया। परशुराम—तो वहां तुमने सैर-सपाटा भी खूब किया, कोई कष्ट न होने पाया। भोजन के बाद गाना-बजाना हुआ होगा? मर्यादा—गाना बजाना तो नहीं, हां, सब अपना-अपना दुखड़ा रोती रहीं, शाम तक मेला उठ गया तो दो सेवक हम लोगों को ले कर स्टेशन पर आए। परशुराम—मगर तुम तो आज सातवें दिन आ रही हो और वह भी अकेली? मर्यादा—स्टेशन पर एक दुर्घटना हो गयी। परशुराम—हां, यह तो मैं समझ ही रहा था। क्या दुर्घटना हुई? मर्यादा—जब सेवक टिकट लेने जा रहा था, तो एक आदमी ने आ कर उससे कहा—यहां गोपीनाथ के धर्मशाला में एक आदमी ठहरे हुए हैं, उनकी स्त्री खो गयी है, उनका भला-सास नाम है, गोरे-गोरे लम्बे-से खूबसूरत आदमी हैं, लखनऊ मकान है, झवाई टोले में। तुम्हारा हुलिया उसने ऐसा ठीक बयान किया कि मुझे उसस पर विश्वास आ गया। मैं सामने आकर बोली, तुम बाबूजी को जानते हो? वह हंसकर बोला, जानता नहीं हूं तो तुम्हें तलाश क्यो करता फिरता हूं। तुम्हारा बच्चा रो-रो कर हलकान हो रहा है। सब औरतें कहने लगीं, चली जाओं, तुम्हारे स्वामीजी घबरा रहे होंगे। स्वयंसेवक ने उससे दो-चार बातें पूछ कर मुझे उसके साथ कर दिया। मुझे क्या मालूम था कि मैं किसी नर-पिशाच के हाथों पड़ी जाती हूं। दिल मैं खुशी थी किअब बासू को देखूंगी तुम्हारे दर्शन करूंगी। शायद इसी उत्सुकता ने मुझे असावधान कर दिया। परशुराम—तो तुम उस आदमी के साथ चल दी? वह कौन था? मर्यादा—क्या बतलाऊं कौन था? मैं तो समझती हूं, कोई दलाल था? परशुराम—तुम्हे यह न सूझी कि उससे कहतीं, जा कर बाबू जी को भेज दो? मर्यादा—अदिन आते हैं तो बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। परशुराम—कोई आ रहा है। मर्यादा—मैं गुसलखाने में छिपी जाती हूं। परशुराम –आओ भाभी, क्या अभी सोयी नहीं, दस तो बज गए होंगे। भाभी—वासुदेव को देखने को जी चाहता था भैया, क्या सो गया? परशुराम—हां, वह तो अभी रोते-रोते सो गया। भाभी—कुछ मर्यादा का पता मिला? अब पता मिले तो भी तुम्हारे किस काम की। घर से निकली स्त्रियां थान से छूटी हुई घोड़ी हैं। जिसका कुछ भरोसा नहीं। परशुराम—कहां से कहां लेकर मैं उसे नहाने लगा। भाभी—होनहार हैं, भैया होनहार। अच्छा, तो मै जाती हूं। मर्यादा—(बाहर आकर) होनहार नहीं हूं, तुम्हारी चाल है। वासुदेव को प्यार करने के बहाने तुम इस घर पर अधिकार जमाना चाहती हो। परशुराम –बको मत! वह दलाल तुम्हें कहां ले गया। मर्यादा—स्वामी, यह न पूछिए, मुझे कहते लज्ज आती है। परशुराम—यहां आते तो और भी लज्ज आनी चाहिए थी। मर्यादा—मै परमात्मा को साक्षी देती हूं, कि मैंने उसे अपना अंग भी स्पर्श नहीं करने दिया। पराशुराम—उसका हुलिया बयान कर सकती हो। मर्यादा—सांवला सा छोटे डील डौल काआदमी था।नीचा कुरता पहने हुए था। परशुराम—गले में ताबीज भी थी? मर्यादा—हां,थी तो। परशुराम—वह धर्मशाले का मेहतर था।मैने उसे तुम्हारे गुम हो जाने की चर्चा की थी। वहउस दुष्ट ने उसका वह स्वांग रचा। मर्यादा—मुझे तो वह कोई ब्रह्मण मालूम होता था। परशुराम—नहीं मेहतर था। वह तुम्हें अपने घर ले गया? मर्यादा—हां, उसने मुझे तांगे पर बैठाया और एक तंग गली में, एक छोटे- से मकान के अन्दर ले जाकर बोला, तुम यहीं बैठो, मुम्हारें बाबूजी यहीं आयेंगे। अब मुझे विदित हुआ कि मुझे धोखा दिया गया। रोने लगी। वह आदमी थोडी देर बाद चला गया और एक बुढिया आ कर मुझे भांति-भांति के प्रलोभन देने लगी। सारी रात रो-रोकर काटी दूसरे दिन दोनों फिर मुझे समझाने लगे कि रो-रो कर जान दे दोगी, मगर यहां कोई तुम्हारी मदद को न आयेगा। तुम्हाराएक घर डूट गया। हम तुम्हे उससे कहीं अच्छा घर देंगें जहां तुम सोने के कौर खाओगी और सोने से लद जाओगी। लब मैने देखा किक यहां से किसी तरह नहीं निकल सकती तो मैने कौशल करने का निश्चय किया। परशुराम—खैर, सुन चुका। मैं तुम्हारा ही कहना मान लेता हूं कि तुमने अपने सतीत्व की रक्षा की, पर मेरा हृदय तुमसे घृणा करता है, तुम मेरे लिए फिर वह नहीं निकल सकती जो पहले थीं। इस घर में तुम्हारे लिए स्थान नहीं है। मर्यादा—स्वामी जी, यह अन्याय न कीजिए, मैं आपकी वही स्त्री हूं जो पहले थी। सोचिए मेरी दशा क्या होगी? परशुराम—मै यह सब सोच चुका और निश्चय कर चुका। आज छ: दिन से यह सोच रहा हूं। तुम जानती हो कि मुझे समाज का भय नहीं। छूत-विचार को मैंने पहले ही तिलांजली दे दी, देवी-देवताओं को पहले ही विदा कर चुका:पर जिस स्त्री पर दूसरी निगाहें पड चुकी, जो एक सप्ताह तक न-जाने कहां और किस दशा में रही, उसे अंगीकार करना मेरे लिए असम्भव है। अगर अन्याय है तो ईश्वर की ओर से है, मेरा दोष नहीं। मर्यादा—मेरी विवशमा पर आपको जरा भी दया नहीं आती? परशुराम—जहां घृणा है, वहां दया कहां? मै अब भी तुम्हारा भरण-पोषण करने को तैयार हूं।जब तक जीऊगां, तुम्हें अन्न-वस्त्र का कष्ट न होगा पर तुम मेरी स्त्री नहीं हो सकतीं। मर्यादा—मैं अपने पुत्र का मुह न देखूं अगर किसी ने स्पर्श भी किया हो। परशुराम—तुम्हारा किसी अन्य पुरूष के साथ क्षण-भर भी एकान्त में रहना तुम्हारे पतिव्रत को नष्ट करने के लिए बहुत है। यह विचित्र बंधन है, रहे तो जन्म-जन्मान्तर तक रहे: टूटे तो क्षण-भर में टूट जाए। तुम्हीं बताओं, किसी मुसलमान ने जबरदस्ती मुझे अपना उच्छिट भोलन खिला दियया होता तो मुझे स्वीकार करतीं? मर्यादा—वह.... वह.. तो दूसरी बात है। परशुराम—नहीं, एक ही बात है। जहां भावों का सम्बन्ध है, वहां तर्क और न्याय से काम नहीं चलता। यहां तक अगर कोई कह दे कि तुम्हारें पानी को मेहतर ने छू निया है तब भी उसे ग्रहण करने से तुम्हें घृणा आयेगी। अपने ही दिन से सोचो कि तुम्हारेंसाथ न्याय कर रहा हूं या अन्याय। मर्यादा—मै तुम्हारी छुई चीजें न खाती, तुमसे पृथक रहती पर तुम्हें घर से तो न निकाल सकती थी। मुझे इसलिए न दुत्कार रहे हो कि तुम घर के स्वामी हो और कि मैं इसका पलन करतजा हूं। परशुराम—यह बात नहीं है। मै इतना नीच नहीं हूं। मर्यादा—तो तुम्हारा यहीं अतिमं निश्चय है? परशुराम—हां, अंतिम। मर्यादा-- जानते हो इसका परिणाम क्या होगा? परशुराम—जानता भी हूं और नहीं भी जानता। मर्यादा—मुझे वासुदेव ले जाने दोगे? परशुराम—वासुदेव मेरा पुत्र है। मर्यादा—उसे एक बार प्यार कर लेने दोगे? परशुराम—अपनी इच्छा से नहीं, तुम्हारी इच्छा हो तो दूर से देख सकती हो। मर्यादा—तो जाने दो, न देखूंगी। समझ लूंगी कि विधवा हूं और बांझ भी। चलो मन, अब इस घर में तुम्हारा निबाह नहीं है। चलो जहां भाग्य ले जाय।
* परशुराम - (санскрит: परशुराम, Парашурама) буквально «Рама с топором», первый святой воин. Парашурама почитается как основатель сословия брахманов. В индуистской мифологии он является шестой аватарой Вишну пришёл на землю чтобы избавить брахманов от тирании кшатриев. Когда-то была страна Парашурама - Парашурама Кшетра - включала прибрежные районы Кералы, Карнатаки, Гоа и Махараштры.
** मर्यादा - честь, достоинство, правильность, уместность, кодекс поведения, черта за которую не надо переступать. Maryada Purushottam - Марьяда Пурушоттам - означает "самый лучший образец дисциплинированного человека", "тот, кто всегда поступает правильно" - это одно из имён Рамы. Рама - легендарный древнеиндийский царь Айодхьи. Рама почитается в индуизме как седьмая аватара Вишну, сошедшая в мир в последнюю четверть Трета-юги около 1,2 млн лет назад. Большинство индуистов считают Раму реально существовавшей исторической фигурой, царём, правившим бо́льшей частью современной Индии из своей столицы Айодхьи. Наряду с Кришной, Рама является одной из самых популярных аватар Вишну в индуизме. Культ Рамы особенно характерен для последователей вайшнавизма — преобладающего направления в индуизме. Подробное жизнеописание Рамы содержится в «Рамаяне».